Vedsar Shiv Stav वेदसारशिवस्तव Kalicharan Maharaj Gyan Ganga
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Vedsar Shiv Stav - वेदसारशिवस्तव: | Kalicharan Maharaj | Gyan Ganga • श्री परम पूज्य भगवत्पाद आदि शंकराचार्य द्वारा रचित वेदसारशिवस्तवः का श्रवण करें भारत के लोकप्रिय संत, युवाओं के प्रेरणास्त्रोत और परम काली भक्त श्री कालीचरण जी महाराज के मधुर वाणी में • ---------------------------------------------- • ॥ वेदसार शिवस्तव:॥ • पशूनां पतिं पापनाशं परेशंगजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम्जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिंमहादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम् ॥१॥ • भावार्थ— जो सम्पूर्ण प्राणियों के रक्षक हैं, पापका ध्वंस करने वाले हैं, परमेश्वर हैं, गजराजका चर्म पहने हुए हैं तथा श्रेष्ठ हैं और जिनके जटाजूटमें श्रीगंगाजी खेल रही हैं, उन एकमात्र कामारि श्रीमहादेवजी का मैं स्मरण करता हुॅं ||1|| • महेशं सुरेशं सुरारातिनाशंविभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रंसदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम् ॥२॥ • भावार्थ— चन्द्र,सूर्य और अग्नि— तीनों जिनके नेत्र हैं, उन विरूपनयन महेश्वर, देवेश्वर, देवदु:खदलन, विभु, विश्वनाथ, विभूतिभूषण, नित्यानन्दस्वरूप, पंचमुख भगवान् महादेवकी मैं स्तुति करता हूॅं ||2|| • गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णंगवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गंभवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम् ॥३॥ • भावार्थ— जो कैलासनाथ हैं, गणनाथ हैं, नीलकण्ठ हैं, बैलपर चढ़े हुए हैं, अगणित रूपवाले हैं, संसारक आदिकारण हैं, प्रकाशस्वरूप हैं, शरीर में भस्म लगाये हुए हैं और श्री पार्वतीजी जिनकी अद्र्धागिंनी हैं, अन पंचमुख महादेवजी को मैं भजता हुॅं ||3|| • शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौलेमहेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूपःप्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप ॥४॥ • भावार्थ— हे पार्वतीवल्लभ महादेव ! हे चन्द्रशेखर ! हे महेश्वर ! हे त्रिशूलिन ! हे जटाजूटधरिन्! हे विश्वरूप ! एकमात्र आप ही जगत् में व्यापक हैं। हे पूर्णरूप प्रभो ! प्रसन्न् होइये, प्रसन्न् होइये ||4|| • परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यंनिरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्यतो जायते पाल्यते येन विश्वंतमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम् ॥५॥ • भावार्थ— जो परमात्मा हैं, एक हैं, जगत् के आदिकारण हैं, इच्छारहित हैं, निराकार हैं और प्राणवद्वारा जाननेयोग्य हैं तथा जिनसे सम्पूर्ण विश्व की उत्पत्ति और पालन होता है और फिर जिनमें उसका लय हो जाता है उन प्रभुको मैं भजता हूॅ ||5|| • न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायु-र्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रान गृष्मो न शीतं न देशो न वेषोन यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीडे ॥६॥ • भावार्थ— जो ज पृथ्वी हैं, न जल हैं, न अग्नि हैं, न वायु हैं और न आकाश है; न तन्द्रा हैं, निन्द्रा हैं, न ग्रीष्म हैं और न शीत हैं तथा जिनका न कोई देश है, न वेष है, उन मूर्तिहीन त्रिमूर्ति की मैं स्तुति करता हूॅं ||6|| • अजं शाश्वतं कारणं कारणानांशिवं केवलं भासकं भासकानाम्तुरीयं तमःपारमाद्यन्तहीनंप्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम् ॥७॥ • भावार्थ— जो अजन्मा हैं नित्य हैं, कारण के भी कारण हैं, कल्याणस्वरूप हैं, एक हैं प्रकाशकों के भी प्रकाशक हैं, अवस्थात्रय से विलक्षण हैं, अज्ञान से परे हैं, अनादि और अनन्त हैं, उन परमपावन अद्वैतस्वरूप को मैं प्रणाम करता हूॅं ||7|| • नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्तेनमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्तेनमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्यनमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य ॥८॥ • भावार्थ— हे विश्वमूर्ते ! हे विभो ! आपको नमस्कार है। नमस्कार है हे चिदानन्दमूर्ते ! आपको नमस्कार हैं नमस्कार है। हे तप तथा योगसे प्राप्तव्य प्रभो ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। वेदवेद्य भगवन् ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है ||8|| • प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथमहादेव शंभो महेश त्रिनेत्रशिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारेत्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्यः ॥९॥ • भावार्थ— हे प्रभो ! हे त्रिशूलपाणे ! हे विभो ! हे विश्वनाथ ! हे महादेव ! हे शम्भो ! हे महेश्वर ! हे त्रिनेत्र ! हे पार्वतीप्राणवल्लभ ! हे शान्त ! हे कामारे ! हे त्रपुरारे ! तुम्हारे अतिरिक्त न कोई श्रेष्ठ है, माननीय है और न गणनीय है ||9|| • शंभो महेश करुणामय शूलपाणेगौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि ॥१०॥ • भावार्थ— हे शम्भो ! हे महेश्वर ! हे करूणामय ! हे त्रिशूलिन् ! हे गौरीपते ! हे पशुपते ! हे पशुबन्धमोचन ! हे काशीश्वर ! एक तुम्हीं करूणावश इस जगत् की उत्पति, पालत और संहार करते हो; प्रभो ! तुम ही इसके एक मात्र स्वामी हो ||10|| • त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारेत्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथत्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीशलिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन् ॥११॥ • भावार्थ— हे देव ! हे शंकर ! हे कन्दर्पदलन ! हे शिव ! हे विश्वनाथ ! हे इश्वर ! हे हर ! हे हर ! हे चराचरजगद्रूप प्रभो ! यह लिंगस्वरूप समस्त जगत् तुम्हीं से उत्पन्न होता है, तुम्हीं में स्थित रहता है और तुम्हीं में लय हो जाता है ||11|| • ।। इति श्रीमच्छकंराचार्यकृतो वेदसारशिवस्तव: सम्पूर्ण:।। • ---------------------- • Topic Cover - • Vedsar Shiv Stav • Vedsar Shiv Stav In Hindi • vedsar shiv stav lyrics with meaning in hindi • vedsar shiv stav stotra • vedsar shiv stuti • vedasara shiva stotram • vedasara shiva stotram meaning in hindi • vedsar shiv stotram meaning • vedsar shiv stav lyrics in sanskrit • --------------------------- • Credit --- • Singer - Kaalicharan Ji Maharaj • Music - Keshav Kundal • Produced By - Gyan Ganga • Produced at - Spectral Audio • Record Label - Spau Sonic Solutions PVT LTD • -------------------------- • श्री कालीचरण महाराज जी से मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए • संपर्क करें - • Helpline No. • 09826829944 • 07000585665 • 09826886543 • 08109872641 • 09425063877 • 09300480344 • 09111005005 • IF YOU LIKE THIS VIDEO PLEASE SHARE • • #वेदसारशिवस्तव: #Vedsarshivstav #KaalicharanMaharaj
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